आँसू सूखने का
भ्रम सा था
बहुत महीन हो गये
थे , और ठंडे ....
जैसे बर्फ पर रखा
हाथ , कुछ पल बाद
हो जाता है
हर अहसास से मुक्त ……
लेकिन ,अब ये ऊष्मा कैसी…! !
मोटी बड़ी बूंदों से
ढुलक आते है
बात बात पर ……
स्नेहिल स्पर्श से
बारिश की बूँद से
टप.…टप.…टप.... !!
भाव की ऊष्मा
से ,महक उठा
मिटटी का मन
शायद से .......