जब भी होती हूँ 
स्वयंम  के साथ ...
 फिंगर्स  क्रोस्ड की मुद्रा में ...
जुड जाते हैं हाथ .....

श्वास नि:श्वास का बहाव ..
बनता 
अनहद का भाव ...
तीव्र स्वर से खटखटाता 
विशुधि द्वार .........!!

धुरी पर घूमता 
स्पंदन के साथ ...
गटकता है सांस ....!!

हवनकुंड सी तापित इन्द्रियाँ 
दृष्टि का मंत्रोचार ....
जागृत  का आह्वान ....

प्रकट होता पुंज अपार ...
भृकुटी के मध्य द्वार  
फैलता शून्य अपार ...
मिल  जाता सह्स्त्र्द्वार.....!!!!!