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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

दृष्टिकोण .....

शिवरात्रि के रोज़
पत्तों और
कच्चे फलों से
विरक्त कर दिया गया
'बेल 'का पेड़ .....!

श्रद्धा ,अभिव्यक्ति का
ये रूप 
मुझे गया 
झकझोर ....

क्यूंकि ,
एक स्पर्श के बाद
पत्तों ,फलों की 
जगह थी
कचरे का डिब्बा ...!!

सोच रही हूँ .....
समय से पहले
ये मृत्यु है
जीवन की ,
या फिर
मुक्ति का
कोई सिलसिला ....!

धारणाओं ,मान्यताओं
की भूमि पर ,
जीवंत हो गया
 दृष्टिकोण ....
अन्त:करण पुकार उठा ....

जीवन जीवन होता है .....
भिन्न होता है तो
दृष्टिकोण .....
जो देता है मायने
जीवन को ........!!

(ये दृश्य मनगढंत नहीं ...हकीकत है ...)
("काव्य चेतना " से  ..)
संपादक :डॉ. धर्म स्वरुप गुप्त 
वर्ष :2009

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

कल शिवरात्रि .......
आप क्या अर्पित करने वाले हैं बाबा को .......
दूध ...
जल ...
बिल्व पत्र...
बिल्व फल (कच्चा)
फूल ...
भांग ....
धतूरा ......
या सब कुछ ....
या कुछ भी नहीं .....
जो भी अर्पित करेंगे उसके पीछे  क्या
वजह है .....धारणा है....
अपने विचार रखे .....सादर!

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

प्यार’.......





प्यार
एक शब्द
जिसके अर्थ को ‘कुछ
स्वतंत्र हाथों ने
इतना उपर उछाला
कि
लटक गया है
धरती और आकाश 
के बीच,
ना जमीं ही
पकड़ पा रही है उसे
और नाआसमान ही
झुकना जानता है...

( "काव्य-चेतना "में प्रकाशित )

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

इंतज़ार .......


इंतज़ार.....
नहीं सिला
जा सकता ....
यकीनन ,
सिला जा सकता ,
तो .....
बन जाता लिबास  ....
जिसे जब चाहा...
 फैंक दिया जाता ...
 उतार कर.....या
दे दिया जाता...
 किसी को दान में .....
 या बेच दिया जाता ...
बाज़ार में ...
किसी नई
ख्वाहिश की खातिर  .....!

शायद ..
इसी लिए
पहनता है इसे
कोई फरियादी ,
लपेट कर खुद को
 सहेजता है जैसे....
 स्वयं को ,
स्वयं में से ....!!!