अमृता के जन्म दिन पर अमृता के लिए
समं दर का सूरज
तीन बार
किनारों ने
सिर उठाया
तीनों बार
उनके वजूद को
चूर होते पाया ...
इसलिए
छोड़
किनारों को पीछे
नदी के बहाव को
लगाया गले ....
पर
जानती हो ...
किनारे
छूटते कहाँ है..!
चलते हैं वो तो
साथ ही
या
घुल जाते है
लहरों के आवेग से .....
समंदर हो
और तुम्हारे
माथे पर
चमकता सूरज
कोई और नहीं
तुम्हारे
घुले हुए किनारे है........