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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

कान्हा ,कहाँ लिख पाऊँगी ...




कान्हा 
कहाँ लिख पाऊँगी 
मैं ,राधा के प्रेम को .....
लिखा जा सकता ,तो 
लिख देती 'वो '
स्वयं.......
लिखना तो दूर ,
कहा भी तो नही 
कभी उसने .....!!
बस किया ...
तुमसे प्रेम ,और 
किया भी ऐसे 
कि खुद 
हो गई 
प्रेम स्वरूपा.. 
और तुम्हे 
बना लिया 
अनन्य भक्त.....! 
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इसलिए, कान्हा..!
मत होना नाराज़ ,
नही लिख पाऊँगी 
मैं कभी 
चाह कर भी .....
पर हाँ ,देना मुझको 
वो दृष्टि ....
पढ़ पाऊं 
उस नेह को ...
प्रेममयी आँखों की 
मुस्कान में ...
तेरी बांसुरी की 
तान में ...
उसके चरणों की 
थकान में ...
तेरे हाथों की 
पहचान में ...
आंसुओं के 
आह्वान में ...
भक्ति के 
विरह -गान में ...
दो रूप 
एक प्राण में ...!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
प्रेम ,भक्ति की 
यही गलबहियां 
खींच लेती है मुझे ....
आत्मविभोर हो 
खिल उठती हूँ ...
फ़ैल जाते हैं होंठ 
खुद ब खुद ही ...
देखती हूँ ,
कनखियों से ,
सकुचाहट के साथ ...
मुस्कुरा देते हो 
तुम भी 
राधा के साथ ......!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बस ,कान्हा ...! 
यहीं से ,
होता है शुरू 
एक सफ़र .....
हवाओं के उठने का ...
समंदर में उतरने का ...
बादल के बनने का ...
आसमान में उड़ने का ...
बरसात के होने का ..
मिटटी के भीगने का ...
फूलों के खिलने का ...
महक के बिखरने का ...!!!!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इससे पहले कि 
बिखर जाऊं ...
तान देते हो 
चादर झिलमिल सी ....
छोड़ देते हो मुझे 
फिर एक और ...
यात्रा के लिए .....
.......................
पर ,सुनो कान्हा ..!!
राह भी तेरी ...
यात्रा भी तेरी ...
पर मंजिल 
है मेरी ...!
इसलिए कान्हा ...!!!
न भूलना 'तुम '
कभी ये बात ........
क्यूंकि 
यात्रा ,
कितनी भी लम्बी हो ...
राह , 
कितनी भी कठिन हो ...
मंजिल तो 
निश्चित है ........./
इसलिए कान्हा ...!
बिखर जाने दे ...
उतर जाने दे ...
हो जाने दे 
समंदर ....
शायद ,तब 
कह पाऊं ...
लिख पाऊं ....
कुछ ऐसा 
जो हो बिलकुल 
तेरी राधा के जैसा ..........
तेरी वंशी के प्राण जैसा .......

अनुगूंज..


अनुगूंज.....

प्रेम 


लेता है जन्म 

काराग्रह में .....

विषमता के 

समंदर से 

गुजरता ...

खिलता है 

यमुना तट पे ...

धड़क उठता है,  

मधुबन, 

उसकी महक के 

स्पर्श से ......
...............

और फिर 

गूंज उठता है 

अनूगूंज सा ....

मंदिर के 

अनहद 

नाद में .....



मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

तारुफ़ मेरा....

जब से ,पकड़ा है तूने , हाथ ये मेरा...

छूटता जा रहा ,जग से ,ताल्लुक मेरा ....../
.................................................

रात भर ,हरसिंगार सा,मैं खिलता रहा .... 

हर सुबह रहता है ,तेरी आँखों में ,तारुफ़ मेरा...../
...........................................................

न मैं मीरा बनी, न मैं राधा हुई ...

रिश्ता तुझसे बहुत ही है नाज़ुक मेरा ......./
......................................

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

कब उसने जाना है ....



बादल से उसका  कुछ रिश्ता पुराना है ,
बरसात का इन आँखों से गहरा याराना है ..
......
अपनी ही उड़ानों से फुर्सत उसे कब कहाँ ,
किस धरती पर बरसा था कब उसने जाना है .....

.........

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

प्रेम .....!!!!!!





प्रेम .....!!!!!!
नहीं किया
कभी भी मैंने ,,
..........फिर ...........
परिभाषा
कैसे बतलाती
 तुमको ......?


जब हुआ
हो गया
'सिर्फ '...
"उसी" से .....
होना था 
जिस किसी से  .......!!!!!!!!!!.