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रविवार, 7 अगस्त 2011

दोस्त

दोस्त 
दो सत 
जैसे सूरज 
जैसे सागर 
तभी तो 

होता है विरक्त ...
रज से 
तम से 
बंधता है सम 
सिर्फ 
सत से ......

8 टिप्‍पणियां:

  1. मित्रता पर बहुत सुन्दर रचना....

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  2. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई

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  3. सुंदर प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया शरद जी ,संगीता जी ,वर्षा जी और इमरान जी

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  4. सुन्दर ब्लोग पर सुन्दर काम और शानदार रचना १
    बधाई !

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