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मंगलवार, 31 मई 2011

आधार

प्रेम से


देखा


तो हो गया


निर्विकार .....!! ! !


ज़रा सी


अनदेखी


और फैलता


कितना


विकार.......??? ? ? ?

सफ़र

कभी कभी
यूँ
चली आती है
जैसे हवा,
जैसे किरण
या फैंक दे
कोई
ठहरे हुए
पानी में
कंकर ....
बहुत
जानलेवा
होता है ये
भंवर ~~~~
फिर भी
कहाँ
रुकता है
याद का
सफ़र.........

मंगलवार, 17 मई 2011

सुर और ताल

वेद'
बन गए वाद
'शास्त्र'
बन गए शस्त्र
और ‘गीता’
रह गई बन कर गीत
'कौन हैं' जो
सुर पहचाने
'कौन है' जो
ताल मिलाए
बैठे हैं सब के सब
जाल बिछाए......

अधिकार ..............

अधिकार खरपतवार हो गए
कर्त्तव्य दरकिनार हो गए .....
अत्याचार बढ़े इतने
कानून खुद शिकार हो गए .....
अर्थ जाल का बोलबाला
शब्दकोष निस्सार हो गए .....
बेलें बन गई पेड़ यहाँ पर
पेड़ गुनाहगार हो गए .....
कौन सुनेगा, किस से कहोगे
गूंगे बहरे राजदार हो गए .....
देख, सुन, और ओढ़ ले चुप्पी
साये तक दीवार हो गए .....
सोच हुई गुलाम जिस्म की
जिस्म अब अखबार हो गए .....
अच्छे लोग बहुत यहाँ है
बुरे अब दुशवार हो गए .....
सोच के दायरे फैले इतने
रिश्ते तक व्यापार हो गए .....


(" दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ में प्रकाशित )